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Tuesday, November 26, 2019

Faith and superstition

Faith and superstition

There is a very subtle difference between faith and superstition and if that difference is not understood, it does not take long to convert faith into superstition.

It was raining heavily in one village. Started filling with lots of water. People were leaving the village after saving their lives. Nilesh, who lives in the village, had unwavering faith in God and was telling everyone, "There is no need to leave the village. By God's grace, either the rain will stop or there will be a way to escape". People would listen to him and go ahead without saying anything because they were also going unhappy that they had to run away leaving everything. Those who did not want to go sat on the roofs of the house and now it was so full of water that Nilesh also had to go to the roof of his house. He was confident that God himself would come to save him. When the water started filling up more, people started sitting in boats and the roof was filled with water, then Nilesh climbed the tree with it. People who knew him equally got out of the boat and asked Nilesh to come in the boat. But Nilesh refused. The water continued to rise and climbed the high branch of the Nilesh tree. In a short time, the rescue team's aircraft arrived and ropes were hung from them, which caught the people in the aeroplane. But Nilesh refused to hold the rope and said that I have full faith in my God, he will save me. But in a while, the water-filled up all around and Nilesh drowned in that water.

When he was brought before God, he shouted loudly that I believed in you so much but you did not help me during my trouble. I kept waiting for you but you did not come and lost my life. Then God said that I came to save you again and again but you did not believe me. I asked the villagers to leave you at the start of the rains. When the water was full, I sent the boat and when you did not take any step to save your life, I also hung the rope from the aeroplane which was caught You could have survived but your faith had turned into superstition due to which you did not make any effort to protect yourself.

This kind of thing also happens to us many times that instead of improving our own circumstances we expect another. It is not a bad thing to trust a particular person, but it is not right to think that everything will be fixed automatically due to trust. There is a lot to be done to fix everything. It is good to believe in God, but it should not be turned into superstition. God makes someone a medium to do your work.

God himself does not come down to do any work. One should not give up work in the faith of God but should work more diligently and diligently. With the belief that God will help and all will be well. Only the positivity of this belief will help in completing the work.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

विश्वास और अंधविश्वास

विश्वास और अंधविश्वास


विश्वास और अंधविश्वास में बहुत बारीक सा अंतर होता है और अगर वह फर्क समझा नहीं जाए तो विश्वास को अंधविश्वास में बदलते देर नहीं लगती।

एक गाँव में बहुत बारिश हो रही थी। खूब पानी भरने लगा। लोग जान बचा कर गाँव छोड़कर जा रहे थे। गाँव में रहने वाले नीलेश को भगवान पर अटूट विश्वास था और वह सब लोगों को कह रहा था, कि, "गाँव को छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। भगवान की कृपा से या तो बारिश बन्द हो जाएगी या बचने का कोई मार्ग मिल जाएगा"। लोग उसकी बात सुनते और बिना कुछ कहे आगे बढ जाते क्योंकि वे भी दुखी होकर जा रहे थे कि सारा सामान भी छोड़कर भागना पड़ रहा है। जो जाना नहीं चाहते थे वह घर की छतों पर चढ़कर बैठ गए अब इतना पानी भर गया कि नीलेश को भी अपने घर की छत पर जाना पड़ा। उसे पूरा विश्वास था कि ईश्वर खुद उसे बचाने के लिए आएंगे। जब पानी और ज्यादा भरने लगा तो लोग नावों में बैठकर जाने लगे छत तक पानी भर गया तो नीलेश साथ के पेड़ पर चढ़ गया। बराबर से उसके जानने वाले लोग नाव में निकले और नीलेश से भी नाव में आने के लिए कहा। परन्तु नीलेश ने मना कर दिया। पानी बढ़ता गया और नीलेश पेड़ की ऊंची शाखा पर चढ़ता गया। थोड़ी देर में बचाव दल का हवाईजहाज आया औऱ उसमें से रस्सियां लटकाई गई जिन्हें पकड़ कर लोग हवाई जहाज में पहुंच गए। परन्तु नीलेश ने रस्सी पकड़ने से इंकार कर दिया और कह दिया कि मुझे अपने परमात्मा पर पूरा विश्वास है, वह मुझे बचा लेंगें। परन्तु थोड़ी देर में चारों तरफ पानी भर गया और निलेश उस पानी में डूब गया।

मरने के बाद जब उसे भगवान के सामने लाया गया तो वह जोर जोर से चिल्लाने लगा कि मैने आप पर इतना अधिक विश्वास किया किंतु मेरी परेशानी के समय तुमने मेरी मदद नहीं की। मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा पर तुम नहीं आये और मेरी जान चली गई। तब भगवान बोले मैं तो बार बार तुझे बचाने के लिए आया लेकिन तूने मेरा विश्वास ही नहीं किया। मैंने बारिश के शुरू होने पर ही गाँव वालों के माध्यम से तुम्हें छोड़कर जाने के लिए कहा।जब पानी भर गया तो मैंने नाव भेजी औऱ जब तुमने अपनी जान बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो मैंने हवाई जहाज से रस्सी भी लटकाई जिसे पकड़ कर तुम बच सकते थे पर तुम्हारा विश्वास अंधविश्वास में बदल चुका था जिसके कारण तुमने अपने को बचाने का कोई प्रयास नही किया।

इस तरह की बात कई बार हमारे साथ भी होती है कि हम अपनी परिस्थितियों को स्वयं सुधारने के स्थान पर दूसरे से उम्मीद करते है। किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर भरोसा करना बुरी बात नहीं है लेकिन भरोसे के चलते सबकुछ ठीक अपनेआप ठीक हो जाएगा यह सोचना ठीक नहीं है। सबकुछ ठीक करने के लिए खुद भी बहुत कुछ करना चाहिए। भगवान पर विश्वास करना अच्छी बात है पर उसे अंधविश्वास में नही बदलना चाहिए। भगवान किसी को माध्यम बनाते हैं आपका काम करने के लिए ।

भगवान खुद नीचे उतर कर नहीं आते किसी काम को करने के लिए। भगवान के भरोसे काम छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि ज्यादा लगन और मेहनत से काम करना चाहिए। इस विश्वास के साथ की भगवान की सहायता मिलेगी और सब ठीक होगा। इस विश्वास की सकारात्मकता ही काम को पूरा करने में मदद करेगी।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Saturday, October 19, 2019

कड़ी मेहनत का मूल्य

कड़ी मेहनत का मूल्य।

जिस काम को करने से कुछ अच्छा मिलता है उन्हें करते रहना चाहिए।

एक व्यक्ति (नन्दन) को बगीचे में माली का काम मिला। मालिक ने उसे बता दिया था कि बगीचे में ज्यादा पेड़-पौधे नहीं है इसलिए वह बगीचे को बेचने की सोच रहा हैं।नन्दन मन लगाकर काम करने लगा। उसने पेडों के आसपास की जगह पर सफाई करके खूब सारे फूलों वाले पौधे लगा दिये। नन्दन बगीचे में ही रहकर पेड़ पौधों की देखभाल करने लगा। रात दिन की मेहनत से कुछ ही समय में बगीचे में चारो तरफ हरियाली दिखाई देने लगी। बाग के फूलों और फलों को बेचने से आमदनी होने लगी। मालिक भी नन्दन से बहुत खुश रहने लगा। एक रात नन्दन को एक पेड़ से आवाज आई कि वह नन्दन की मेहनत से प्रसन्न होकर जमीन के नीचे दबा हुआ धन नन्दन को देना चाहते हैं। यह बात सुनकर नन्दन की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने जमीन खोदकर धन से भरा मटका निकाल लिया। वह सोचने लगा कि अभी तो महीने की पगार से उसका खर्चा चल रहा है जब अपने घर जाएगा तब यह धन निकाल कर ले जाएगा। यह सोचकर उसने धन को बापस जमीन में दबा दिया। अब उसे लगने लगा कि वो जल्दी से छुट्टी लेकर अपने घर चला जाये। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। मालिक ने एक महीने बाद छुट्टी की मंजूरी दी। अब नन्दन ने बगीचे का ध्यान रखना बिलकुल बन्द कर दिया। वह सारे दिन रुपयों के बारे में सोचता रहता।

बिना पानी के कुछ ही दिनों में पौधे मुरझाने लगे। किंतु फिर भी नन्दन ने पेड़-पौधों का ध्यान नहीं रखा। जाने से पहले जब उसने गड्डा खोदकर देखा तो मटके में राख भरी हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया। तब पेड़ ने बताया कि वह धन नन्दन की मेहनत का फल था। नन्दन ने मेहनत करनी बन्द कर दी तो उसका फल भी नष्ट हो गया।

बगीचा नन्दन का नहीं था। वह केवल एक माली था तो वह रकम बगीचे के मालिक की थी। जिसमें से नन्दन को भी कुछ रकम मिल जाती। वह धन निकल कर कोई निवेश कर सकता था। धन खर्च कर सकता था, किंतु उसने लालच से काम लिया और जिस मेहनत, ईमानदारी के कारण धन मिला था। उसी मेहनत और ईमानदारी का साथ छोड़ दिया। वह पहले की तरह ईमानदारी से और मेहनत से काम करते हुए सारी रकम भी रख सकता था। उसने सारी धन सम्पति का लालच करते हुए आलस को भी अपना लिया।जिसकी वजह से उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया।

 जीवन में आगे बढ़ने के लिए, मेहनत सबसे पहले जरूरी होती है। फिर उस मेहनत को बनाये रखना भी जरूरी होता है। जब तक मेहनत करते रहोगे, तब तक सफलता की सीढ़ियाँ भी चढ़ते रहोगें और इन्ही ऊंचाईयों पर आपके लिए भी धन से भरे घड़े, मटके और संदूक इंतजार कर रहे होंगे।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Worth of hard work

Worth of hard work

Those who get some good by doing work, they should keep doing it.

A person (Nandan) found a gardener in the garden. The owner had told him that there are not many trees in the garden, so he is thinking of selling the garden. Nandan started working diligently. He cleaned the place around the trees and planted many flowering plants. Nandan stayed in the garden and took care of tree plants. Due to the hard work of night and day, greenery started appearing in the garden all around. The income started by selling the flowers and fruits of the garden. The owner also became very happy with Nandan. One night, Nandan got a voice from a tree that he was happy with the hard work of Nandan and wanted to give money buried under the ground to Nandan. Hearing this, Nandan's happiness did not stop. He dug up the land and took out a pot full of money. He started thinking that his expenses are running from the pay of the month, when he goes to his house then he will take away the money. Thinking this, he suppressed the wealth in the backyard's ground. Now he started to think that he should leave early and go home. He did not feel like doing any work. The owner approved the leave after one month. Now Nandan has stopped taking care of the garden. He would spend all day thinking about money.

Without water, the plants started to wilt. But still, Nandan did not take care of trees and plants. Before leaving, when he saw digging the pit, the pot was full of ashes. He did not understand how it happened. Then the tree said that this wealth was the fruit of Nandan's hard work. When Nandan stopped working, his fruit was also destroyed.

The garden was not of Nandan. When he was only a gardener, the income was of the owner of the garden. Out of which, Nandan too would have got some amount. Anybody could invest that money. Money could be spent, but he acted greedily and due to the hard work, honesty, he got the money. Left with the same hard work and honesty. He could keep all the money while working honestly and hard as before. Luring all the wealth, he also adopted laziness, due to which all his hard work was lost.

 To get ahead in life, hard work is first required. Then it is also necessary to maintain that hard work. As long as you keep working, you will also keep climbing the steps of success and at these heights, you will also be waiting for you with a pitcher, pot and chest of money.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Monday, October 14, 2019

हर दोस्ती अच्छी नहीं

हर दोस्ती अच्छी नहीं!

दोस्ती बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए। बुरे दोस्त का साथ परेशानी देता है पर अच्छे दोस्त का साथ खुशी देता है।

एक गोबर में रहने वाले कीड़े (गोबरी) की मित्रता एक फूलों पर मंडराने वाले कीड़े (भँवरे) से हो गई। एक दिन गोबरी ने भँवरे को अपने यहाँ खाना खाने के लिए बुलाया। भँवरे को गंदे, बदबूदार गोबर, कूड़े में जाना पड़ा। फिर एक दिन भँवरे ने गोबरी को अपने भोजन के लिए बुलाया। फूलों के सुगन्धित, स्वादिष्ट और मीठे रस को पीकर गोबरी बहुत खुश हो रहा था कि एक व्यक्ति ने उन्ही फूलों को तोड़कर मंदिर में चढ़ा दिया और थोड़ी देर बाद पंडित जी ने सब फूलों को समेट कर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया। भँवरा गोबरी से पूछता है कि, "तुम्हे कैसा लग रहा है", तो गोबरी बोला तुम्हारी मित्रता मेरे लिए बहुत अच्छी रही। स्वादिष्ट भोजन, मंदिर में भगवान के दर्शन और अब गंगाजी का स्पर्श करके मैं धन्य हो गया। गोबरी की मित्रता के कारण, भँवरे को कूड़ा खाना पड़ा और भँवरे की मित्रता ने गोबरी का जीवन सार्थक कर दिया।

दोस्ती खुशी, प्रसन्नता, सुख, शांति, प्रेम, प्यार, सन्तोष पाने के लिए की जाती है। बुरे लोगो का साथ हमारे जीवन में कोयले की तरह होता हैं, जो गर्म होगा तो हाथ जला देगा और ठंडा होगा तो हाथ काले कर देगा। मतलब नुकसान तो करेगा ही। ऐसे लोग सच्चे मित्र नहीं होते, जोंक की तरह  होते हैं। जो सामने अच्छी तरह से बात करते हैं परन्तु पीछे से आपकी कही गई बातों का मजाक उड़ाते हैं, बुराई करते हैं, गोपनीय बातें उजागर करते हैं और जरूरत पड़ने पर साथ भी नहीं देते। इसलिए नकारात्मक लोगों को अपने आसपास से हटा दे ताकि जीवन में अच्छे दोस्त के आने की जगह बने। जो आपकी भावनाओं की कद्र करने वाला हो। जिससे बात करके मन प्रसन्न हो, परेशानी भूल जाये। ऐसे दोस्त के लिए जगह बनाने के लिए अपने नजदीक से फालतू की मित्र मंडली को विदा कर दे। अपना समय किसी अन्य गतिविधियों में लगाना शुरू करे, सकारात्मक सोच के प्रभाव से गलत और बुरे लोग आपसे दूर होंगे। अच्छे दोस्त भी मिलेंगे और खुशी भी मिलेगी।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Not every friendship is good

Not every friendship is good

Friendship must be done very thoughtfully. Supporting bad friend gives trouble but good friend gives happiness.

A dung-worm (gobri) became friends with a worm (bhavra) hovering over a flower. One day Gobari called the bhavra to eat food at his place. The bhavra had to go into dirty, smelly dung, garbage to eat. Then one day the bhavra called Gobri for his meal. Drinking the aromatic, delicious and sweet juices of the flowers, Gobari was very happy that a person plucked those flowers and offered them to the temple and after a while, Panditji carried all the flowers and flowed into Gangaji. bhavra asks Gobri, "How do you feel", then Gobari said your friendship was very good for me. I was blessed with delicious food, darshan of God in the temple and now a touch of Gangaji. Due to Gobari's friendliness, bhavra had to eat garbage and bhavra's friendship made Gobri's life worthwhile.

Friendship is made for happiness, happiness, happiness, peace, love, love, satisfaction. Bad people are treated like coal in our life, which, if hot, will burn hands and if cold, will make hands black. Meaning, it will do harm. Such people are not true friends, like leeches. Those who talk well in front but make fun of what you have said from behind, do evil, expose confidential things and do not accompany them when needed. So, remove negative people from your surroundings so that a good friend can have a place in life, who will appreciate your feelings. Which makes the mind happy by talking, forgetting the trouble. To make room for such a friend, bid farewell to your friend's circle of surplus. Start spending your time in any other activities, wrong and bad people will be away from you due to the effect of positive thinking. You will also get good friends and you will also get happiness.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Monday, October 7, 2019

शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव

शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव

आजकल व्यंग्यात्मक भाषा का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। लगभग सभी को सर्केजम के नाम पर कड़वी बात करने की आदत होती जा रही है।

महाभारत की कहानी में धृतराष्ट्र और पाण्डु भाई थे। राजा बड़े बेटे को बनाया जाता था परंतु धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, अँधे थे, उन्हें दिखाई नहीं देता था तो राज्य सम्भालने का काम उनके छोटे भाई पाण्डु को दे दिया गया। धृतराष्ट्र की सन्तान कौरव और पाण्डु की सन्तान पाण्डव कहलाई। जब पांडवो ने अपना महल बनवाया तो उसमें वास्तुकार ने इस प्रकार की कला का प्रयोग किया कि फर्श पर पानी होने का आभास होता था लगता था कि वहाँ पर तालाब है। जहाँ तालाब था वहाँ लगता था की जमीन है। जब धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन महल देखने आया तो जमीन पर तालाब समझकर उसने तालाब में तैरने के लिए अपने पैरों में से जूतियों को उतार दिया। परन्तु अगला कदम रखते ही उसे पता लगा कि वहाँ पर पानी नही हैं। जब दुर्योधन दूसरे कमरे गया तो  उसे लगा की जमीन पर पानी है औरउसने सोचा कि यह भी पिछली जगह की तरह पानी का धोखा है और जमीन समझ कर पैर रख दिया और पानी में गिर गया। तब द्रोपदी ने हँसते हुए व्यंग्यात्मक वाक्य कहा था कि, "अँधे का पुत्र अँधा ही होता है"। यह सुनने के बाद ही दुर्योधन ने बदला लेने के ठान लिया था और इसी का परिणाम महाभारत के भयंकर युद्ध के रूप में सामने आया।सोलह दिन तक चले इस युद्ध में बहुत ज्यादा तबाही हुई।

पहले कहा जाता था कि ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय,ओरन को शीतल करे,आप हू शीतल होये। यानि ऐसी बात बोलनी चाहिए जिसमें अपने आप को भी अच्छा लगे और सुनने वाले को भी अच्छा लगें।किसी के खराब मूड को भी अच्छी बात बोलकर ठीक किया जा सकता है पर खराब बात बोलने से स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। कई बार परिस्थिति थोड़ी सी बुरी होती है और हम अपने आप को उसके अनुसार बदल नहीं पाते और परेशान होकर कोई बुरी बात कह देते हैं। परिस्थिति तो कुछ समय बाद ठीक हो जाती हैं लेकिन बात का असर इतनी जल्दी ठीक नहीं होता। इसीलिए कहा जाता है कड़वा बोलने वाले का गुड़ भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वालों की तो मिर्च भी बिक जाती है। यह हमारे शब्द ही होते जो दुखी मन पर दवा का काम करते हैं और सामने वाले का दुख कम हो जाता है।व्यंग्यात्मक बातें कई बार तलवार का काम करतें हैं जो सुनने वालों के मन पर इतना बड़ा घाव कर देते हैं कि आपस में रिश्ते बिगड़ जाते हैं। आजकल सबके साथ ही कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ऐसे में कठोर शब्दों का प्रयोग दूसरे को और अधिक नाराज़ कर सकता है।मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने में अंतर होता है।मजाक करते समय सभी उसका आनन्द लेते हैं माहौल हल्का हो जाता है,तनाव कम हो जाता है। सभी लोग अपने आसपास खुशमिजाज व्यक्ति को पसंद करते हैं। जिस व्यक्ति को ताने मारने की आदत होती है उसे कुछ समय तक ही लोग पसंद करते हैं औऱ थोड़े दिन बाद उससे मिलने जुलने वालों की संख्या कम होने लगती है, जबकि खुशमिजाज, मजाकिया, हँसमुख व्यक्ति के चारो ओर से लोग आकर्षित होते हैं।

अगर आप भी चर्चित होना चाहते हैं, लोगों के चहिते बनना चाहते हैं तो हर बात पर ताना मारना, व्यंग्य करना बन्द कर दीजिए। चेहरे का व्यंग्यात्मक अंदाज हटा कर एक सहज,मुस्कुराहट कायम करने की कोशिश करें। शुरू में नकली मुस्कान रखें, धीरे धीरे अपनेआप को खुश रखने की आदत हो जाएगी। थोड़ा समय जरूर लगेगा पर नकली हँसी असली हँसी में बदल जाएगी। चेहरे की लकीरें, झुर्रियां, झाइयाँ दूर हो जाएगी। जीवन मे ऊंचाईयों पर जाने का मूलमंत्र तनावरहित चमकदार और प्रसन्न चेहरा होता है जो सबको आकर्षित करता है।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।