Wednesday, May 27, 2020

कोरोना सकारात्मकता

हम सबने बचपन में एक कहानी सुनी थी कि एक कछुआ और खरगोश में रेस लगी और सबने कछुए को समझाया कि खरगोश की फुर्ती के सामने कछुआ जीत नहीं सकता। परन्तु कछुआ दृढ़ निश्चय से, जीतने का संकल्प करके रेस में भाग लेता है। खरगोश चार छलाँग मे आधी से ज्यादा दूरी तय कर लेता है, और थोड़ी देर आराम करने के लिए, एक पेड़ के नीचे लेट गया। ठंडी हवा में उसकी झपकी लग गई और खरगोश गहरी नींद में सो गया। कछुआ धीरे-धीरे चलता रहा, और दौड़ जीत गया।

  इस कहानी से हम सबने प्रेरणा ली थी कि, लगातार मेहनत करने से मुश्किल काम में भी सफलता प्राप्त होती है। किंतु यह पुराने समय की कहानी थी। आज का समय बेईमानी, भ्र्ष्टाचार और धोखाधड़ी का है। आज की कहानी में कछुआ दौड़ने के लिए खरगोश को चैलेंज करता है। खरगोश सोचता है कि, कछुए ने अपने पुरखों से खरगोश की हार की कहानी सुनी है, और अब रेस में बिना रुके भाग कर वह बहुत आराम से जीत जाएगा। किंतु कछुए की जिद के सामने उसकी एक ना चली और एक बार फिर दोनों के बीच रेस शुरू हुई। कछुए के सामने से खरगोश छलाँग लगाकर भागने लगा। खरगोश ने अपने पीछे कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलता हुआ दिखाई दे रहा था। घुमावदार रास्ते पर भागते हुए उसे अचानक से जीत की रेखा के पास कछुआ दिखाई दिया। खरगोश ने लम्बी छलाँग भी लगाई पर तब तक कछुआ जीत चुका था।

  ये आज के समय की सच्चाई है। कछुआ ईमानदारी से जीत नही सकता था, इसलिए, उसने जीतने की कोशिश भी नहीं की। उसने बेईमानी की और अपने भाई को जीतने की जगह के नजदीक छुपा दिया। जब भाई ने दूर से खरगोश को नजदीक आता देखा, तब उसने जीत की लाइन को छू लिया और जीत गया। कछुये और खरगोश की रेस तो पहले समय मे भी हुई थी, पर तब कछुआ ईमानदारी से जीता था। जबकि, उसके जीतने की उम्मीद नहीं थी। आज का कछुआ बेईमानी करके जीतना चाहता है क्योंकि वह अपने को कमजोर मान कर बेईमानी का सहारा लेता है। हम जानते हैं, कि, इस समय की परेशानियों से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि, बुरे वक्त में भी कुछ ना कुछ अच्छाई जरूर होती है, क्योंकि बुरा वक्त भी हमें कोई ना कोई नया सबक जरूर सीखा कर जाता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि, हम उसमें से क्या-क्या सकारात्मक चीजें ग्रहण करते हैं।

 आज जब चारो तरफ वैश्विक बीमारी फैली हुई है, ज्यादातर लोग बिना कोई प्रयास किये ही हार मान चुके हैं, और काफी लोगों ने बेईमानी का रास्ता अपना लिया है। ये समय नया है, हमारे माता-पिता ने भी यह समय नहीं देखा है। सबके लिए यह एक नया और परेशान करने वाला अनुभव है। मुश्किलों के बाद मिली सफलता का आनंद कुछ अलग ही होता है। सकारात्मक सोच के साथ बड़े और बच्चें एक साथ इस कठिन समय का सामना कर रहे हैं। अब काफी चीजे स्पष्ट हो गई हैं जो लोग अपने बच्चों के निर्णय पर विश्वास नहीं करते थे, सोचते थे कि बच्चों को कुछ नहीं पता होता, हमनें ज्यादा दुनिया देखी है। उन सब लोगों ने भी अब तक काफी कुछ नहीं देखा था। आज की पीढ़ी के कुछ लोग अपने परिवार के बड़ों को तिरस्कार की नजर से देखते थे, उनकों फालतू समझते थे। इस कठिन समय में घर के बड़े लोग अपने परिवार की ढाल बनकर अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से सहारा देने खड़े हो गए। बड़ी से बड़ी समस्या में भी सबने आपस में एक दूसरे से यही कहा कि, ये कोई बड़ी मुसीबत नहीं है। और इसी तरह परिवार वालों को एकदूसरे की ताकत, सहनशीलता और काम सम्भालने की शक्ति का पता लगा। ज्यादातर घरों में पीढ़ियों का अंतर समाप्त हो गया और आदर, प्रेम और अपनापन ने जगह बना ली। यदि अच्छाई देखने की कोशिश करें, तो वह सात तालों को भी खोल कर बाहर आती है। आज के समय की सबसे पहली जरूरत सकारात्मक विचार है जो चुम्बक की तरह से चारों ओर से अच्छाई को आपके पास जरूर लायेंगे। समय गतिशील है, इसलिए, इस वक़्त को भी बीतना होगा, और अच्छा समय जरूर आएगा।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

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