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Wednesday, December 18, 2019

Right Direction

Right Direction

Sometimes we do not understand why our work is not proceeding properly. Even after taking a lot of time and doing some work, that work does not lead to realization.

Madhava was a devotee of Lord Krishna. He often thought that "I do so much devotion, worship, prayer to God but God does not listen to me". Madhav felt that everyone's time was coming, only his time was going bad. His worship is of no use. Lord Shri Krishna Ji is not paying attention to him, then his works are not being done properly. After thinking about such a thing for several days, one day he picked up the idol of Krishna Ji and slammed it on the top of the room and started worshiping him by bringing the idol of Durga Ji. Every morning, incense-lamps started to rotate in front of the idol. One day, he got the idea that the smoke of incense and lamp goes directly upwards and there is a statue of Krishna Ji above, then he must also be smelling this smoke. As soon as the idea came, he picked up a cloth and tied it on the nose of the idol and said that even when I do not work, I cannot smell my sunshine. As soon as he spoke, Krishna Ji appeared visually. God said that till today you were worshiping me like a lifeless idol of stone. Today for the first time you thought in your mind that I breathe. Just then I appeared to remove your problem. Where the direction of your thinking gets corrected, the work also starts to get fixed.

This is a religious story, so God came forward, it does not happen in real life. But it is understandable from this story that the work you do should be done with full dedication, loyalty, and dedication. Madhav did not do puja with all his heart. He used to do all the puja only to follow the rules. So as soon as he thought that the idol breathed, that was the moment when his sense of mind turned into a sense of surrender. When we do work according to the routine then it is very lifeless. There is a lack of meaning in it, whether it is an office, home or any of its work, if it is done happily, with positive thinking, it will give a positive effect. While doing the work with the idea of ​​handling it, doing it with burdensome heart makes that work a burden on itself. Because of which working becomes a headache. Whatever you want to do, do it with joy. Contribute the full hundred percent of your ability to it. Then the result of that work will also be a hundred percent positive and happy.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

सही दिशा

सही दिशा

कभी कभी समझ नहीं आता कि हमारे काम सही तरीके से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे।बहुत ज्यादा समय लगा कर कुछ काम करने पर भी उस काम से सही प्राप्ति नहीं होती।

माधव श्री कृष्ण भगवान का भक्त था। वह अक्सर सोचता था कि "मैं भगवान की इतनी भक्ति, पूजा, अर्चना करता हूँ पर भगवान मेरी सुनते नहीं है"। माधव को लगता था कि सबका समय अच्छा आने लगा है, सिर्फ उसी का समय खराब चल रहा है। उसकी पूजा पाठ किसी काम नहीं आ रही। प्रभु श्री कृष्ण जी उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे, तभी तो उसके काम ठीक से नहीं हो रहे। कई दिनों तक इस तरह की बात सोचने के बाद एक दिन उसने कृष्ण जी की मूर्ति उठाकर कमरे मे ऊपर बनी टाँड़ पर पटक दी और दुर्गा जी की मूर्ति लाकर उनकी पूजा करने लगा। रोज सुबह मूर्ति के सामने धूप-दीप घुमाने लगा। एक दिन उसके मन में विचार आया कि धूप-दीप का धुँआ सीधा ऊपर की ओर जाता है और ऊपर कृष्ण जी की मूर्ति है, तो वह भी इस धुएँ को सूँघते होंगे। बस फिर क्या था, यह विचार आते ही उसने एक कपड़ा उठाया और मूर्ति की नाक पर बाँध दिया औऱ बोला कि जब मेरे काम नहीं करते तो मेरी धूप भी नहीं सूँघ सकते। जैसे ही उसने यह बोला, कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो गए। भगवान बोले कि आज तक तू मुझे पत्थर की निर्जीव प्रतिमा समझ कर मेरी पूजा अर्चना कर रहा था। आज पहली बार तूने मन में सोचा कि मै सांस लेता हूँ। बस तभी मैं तेरी परेशानी को दूर करने के लिए प्रकट हो गया। जहाँ तुम्हारी सोच की दिशा ठीक हो जाती है वहीँ काम भी ठीक होने लगते हैं।

यह एक धार्मिक कहानी है इसलिए भगवान जी सामने आ गए, वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता। परन्तु इस कहानी से यह समझ में आता है कि, जिस काम को करो उसे पूरी लगन, निष्ठा और समर्पण की भावना के साथ करना चाहिए। माधव पूजा को पूरे मन से नही करता था। केवल नियम निभाने के लिए सारी पूजा करता था। इसलिए जैसे ही उसने सोचा कि मूर्ति सांस लेती है, वही क्षण था, जब उसका मन की भावना समर्पण की भावना में बदल गई। जब हम काम को दिनचर्या के अनुसार करते है तो वह बहुत निर्जीव होता है। उसमें सार्थकता का अभाव होता है चाहे दफ्तर हो, घर हो या अपना कोई काम उसको सकारात्मक सोच के साथ खुशी से, मन लगा कर किया जाए तो परिणाम भी सकारात्मक प्रभाव देगा। जबकि काम को निबटाने के विचार से करना, बोझल मन से करना उस काम अपने ऊपर बोझ बना देता है। जिसकी वजह से काम करना एक सिरदर्द बन जाता है। चाहे जो भी करना चाहते हो उसे आनन्द लेकर करें। उसमें अपनी योग्यता का पूरा सौ प्रतिशत योगदान दें। तब उस काम का नतीजा भी सौ प्रतिशत सकारात्मक और खुशी देनें वाला मिलेगा।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Tuesday, December 3, 2019

Everyone's Caretaker

Everyone's Caretaker

There are seven days in a week and there is a story associated with everyone. There are many stories of each day. Today, we talk about one of the many stories of Sunday.

The king of a happy, prosperous kingdom was very religious, ritualistic and kind. His wife used to go to the temple daily to worship. One day after the puja, Pandit Ji tilak with "Roli" on the forehead of the queen, sprinkling Akshat (rice) on the head. When the queen put her hand forward, Pandit ji gave Charanamrit (water placed near God) in it, which the queen drank and put the hand on the head, applied the remaining water drops on the palm to the head. Rani asked that we have never seen God, so why worship him. Panditji told that God arranges for everyone's food. It is a way to honour them, so we care for them. The queen did not like this thing. He saw that there were ants on the sweet offerings. The queen picked up an ant and locked it in the comb between her hair. While sleeping at night, the queen told the king all the things that happened in the temple when she got the ant's attention. When the queen opened her hair part, the ant came out. The queen was surprised that the ant came out of the morning without food and water. Then the king explained that the rice which Panditji had sprinkled on your head. One of his grains was too much for the ant's food, and Charanamrit's hand which fell on the head and drops of water which would be on the hair was the ant's system of water for the whole day. Then the queen understood that God only cares for animals, birds, trees, plants and humans.

It is true that the God who does not let the birds sleeping on the trees fall, he has made some arrangement for everyone. But this does not mean that we should sit with our hands on it that we will get food. Just as the elders have said that the person is hungry, but does not sleep. But in today's time, if we want to make our life good, then a little hard work will have to be done because life is not the purpose of man only to fill his stomach. We are better than animals and birds, we have intelligence, wisdom, knowledge and understanding. Anyone who has all this can make their lifestyle more good with little effort. It takes some time but any ordinary situation can be transformed into a very good situation with the help of self-help, dedication and peace.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

सबका पालनहार

सबका पालनहार

सप्ताह में सात दिन होते हैं और सबके साथ कोई कहानी जुड़ी हुई है। हरेक दिन की अनेक कहानियाँ हैं। आज रविवार की अनेकों कहानियों में से एक कहानी की बात करते हैं।

एक सुखी, सम्पन्न राज्य का राजा बहुत धार्मिक, कर्मकाण्ड करने वाला और दयालु था। उसकी पत्नी रोज पूजा करने मंदिर जाती थी। एक दिन पूजा के बाद पंडित जी रानी के माथे पर "रोली" से तिलक किया, सिर पर अक्षत (चावल) छिड़के। रानी ने हाथ आगे किया तो पंडित जी ने उसमें चरणामृत (भगवान के समीप रखा जल) दिया, जिसको रानी ने पीकर हाथ को सिर पर फिरा लिया, हथेली पर बची पानी की बूंदे सिर पर लगा ली। रानी ने पूछा कि हमने भगवान को कभी देखा नहीं है तो उसकी पूजा क्यों करते हैं। पंडित जी ने बताया कि भगवान सबके भोजन की व्यवस्था करतें हैं। हमारा पालनपोषण करते हैं इसलिए उनका सम्मान करने का यह एक तरीका है। रानी को ये बात कुछ ठीक नहीं लगी। उसने देखा कि बराबर में मीठे प्रसाद पर चींटियाँ लगी हुई हैं। रानी ने एक  चींटी को उठाया और अपने बालों के बीच मे जूड़े में उसे बन्द कर दिया। रात को सोते समय रानी ने मंदिर में हुई सारी बात राजा को बताई तभी उसे चींटी का ध्यान आया। रानी ने बालों का जूड़ा खोला तो चींटी बाहर निकली। रानी को बड़ा अचम्भा हुआ कि चींटी सुबह से बिना भोजन, पानी के भी ठीकठाक बाहर आ गई थी। तब राजा ने समझाया कि जो चावल पंडित जी ने तुम्हारे सिर पर छिड़कें थे। उसका एक दाना भी चींटी के भोजन के लिए बहुत था, और जो चरणामृत का हाथ सिर पर फिराया उस जल की बूंदें जो बालों पर लगी होंगी, तो वह चींटी के पूरे दिन के पानी की व्यवस्था थी। तब रानी को समझ में आया की भगवान ही पशु, पक्षी, पेड़, पौधे और मनुष्य आदि सभी का ध्यान रखते है।

यह बात सही है कि जो भगवान पेड़ों पर सो रहे पक्षियों को गिरने नहीं देते, उन्होंने सबकी कोई ना कोई व्यवस्था जरूर की है। किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि हम हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये कि भोजन तो मिल ही जायेगा।जैसा कि बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि इंसान भूखा जागता जरूर है पर सोता नहीं है। लेकिन आज के समय में यदि हम अपने जीवन को अच्छा बनाना चाहते हैं तो थोड़ी मेहनत अधिक करनी होगी क्योंकि केवल पेट भरने के लिए जीवन, मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। हम पशु, पक्षियों से उन्नत हैं हमारे पास बुद्धि, विवेक, ज्ञान और समझदारी है। जिसके पास ये सब है वह थोड़ा थोड़ा प्रयत्न करके अपनी जीवनशैली को और अधिक अच्छा बना सकता है। थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन सयंम, लगन और शान्ति के साथ किसी भी साधारण परिस्थिति को अति उत्तम स्थिति में बदला जा सकता है।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Tuesday, November 26, 2019

Faith and superstition

Faith and superstition

There is a very subtle difference between faith and superstition and if that difference is not understood, it does not take long to convert faith into superstition.

It was raining heavily in one village. Started filling with lots of water. People were leaving the village after saving their lives. Nilesh, who lives in the village, had unwavering faith in God and was telling everyone, "There is no need to leave the village. By God's grace, either the rain will stop or there will be a way to escape". People would listen to him and go ahead without saying anything because they were also going unhappy that they had to run away leaving everything. Those who did not want to go sat on the roofs of the house and now it was so full of water that Nilesh also had to go to the roof of his house. He was confident that God himself would come to save him. When the water started filling up more, people started sitting in boats and the roof was filled with water, then Nilesh climbed the tree with it. People who knew him equally got out of the boat and asked Nilesh to come in the boat. But Nilesh refused. The water continued to rise and climbed the high branch of the Nilesh tree. In a short time, the rescue team's aircraft arrived and ropes were hung from them, which caught the people in the aeroplane. But Nilesh refused to hold the rope and said that I have full faith in my God, he will save me. But in a while, the water-filled up all around and Nilesh drowned in that water.

When he was brought before God, he shouted loudly that I believed in you so much but you did not help me during my trouble. I kept waiting for you but you did not come and lost my life. Then God said that I came to save you again and again but you did not believe me. I asked the villagers to leave you at the start of the rains. When the water was full, I sent the boat and when you did not take any step to save your life, I also hung the rope from the aeroplane which was caught You could have survived but your faith had turned into superstition due to which you did not make any effort to protect yourself.

This kind of thing also happens to us many times that instead of improving our own circumstances we expect another. It is not a bad thing to trust a particular person, but it is not right to think that everything will be fixed automatically due to trust. There is a lot to be done to fix everything. It is good to believe in God, but it should not be turned into superstition. God makes someone a medium to do your work.

God himself does not come down to do any work. One should not give up work in the faith of God but should work more diligently and diligently. With the belief that God will help and all will be well. Only the positivity of this belief will help in completing the work.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

विश्वास और अंधविश्वास

विश्वास और अंधविश्वास


विश्वास और अंधविश्वास में बहुत बारीक सा अंतर होता है और अगर वह फर्क समझा नहीं जाए तो विश्वास को अंधविश्वास में बदलते देर नहीं लगती।

एक गाँव में बहुत बारिश हो रही थी। खूब पानी भरने लगा। लोग जान बचा कर गाँव छोड़कर जा रहे थे। गाँव में रहने वाले नीलेश को भगवान पर अटूट विश्वास था और वह सब लोगों को कह रहा था, कि, "गाँव को छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। भगवान की कृपा से या तो बारिश बन्द हो जाएगी या बचने का कोई मार्ग मिल जाएगा"। लोग उसकी बात सुनते और बिना कुछ कहे आगे बढ जाते क्योंकि वे भी दुखी होकर जा रहे थे कि सारा सामान भी छोड़कर भागना पड़ रहा है। जो जाना नहीं चाहते थे वह घर की छतों पर चढ़कर बैठ गए अब इतना पानी भर गया कि नीलेश को भी अपने घर की छत पर जाना पड़ा। उसे पूरा विश्वास था कि ईश्वर खुद उसे बचाने के लिए आएंगे। जब पानी और ज्यादा भरने लगा तो लोग नावों में बैठकर जाने लगे छत तक पानी भर गया तो नीलेश साथ के पेड़ पर चढ़ गया। बराबर से उसके जानने वाले लोग नाव में निकले और नीलेश से भी नाव में आने के लिए कहा। परन्तु नीलेश ने मना कर दिया। पानी बढ़ता गया और नीलेश पेड़ की ऊंची शाखा पर चढ़ता गया। थोड़ी देर में बचाव दल का हवाईजहाज आया औऱ उसमें से रस्सियां लटकाई गई जिन्हें पकड़ कर लोग हवाई जहाज में पहुंच गए। परन्तु नीलेश ने रस्सी पकड़ने से इंकार कर दिया और कह दिया कि मुझे अपने परमात्मा पर पूरा विश्वास है, वह मुझे बचा लेंगें। परन्तु थोड़ी देर में चारों तरफ पानी भर गया और निलेश उस पानी में डूब गया।

मरने के बाद जब उसे भगवान के सामने लाया गया तो वह जोर जोर से चिल्लाने लगा कि मैने आप पर इतना अधिक विश्वास किया किंतु मेरी परेशानी के समय तुमने मेरी मदद नहीं की। मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा पर तुम नहीं आये और मेरी जान चली गई। तब भगवान बोले मैं तो बार बार तुझे बचाने के लिए आया लेकिन तूने मेरा विश्वास ही नहीं किया। मैंने बारिश के शुरू होने पर ही गाँव वालों के माध्यम से तुम्हें छोड़कर जाने के लिए कहा।जब पानी भर गया तो मैंने नाव भेजी औऱ जब तुमने अपनी जान बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो मैंने हवाई जहाज से रस्सी भी लटकाई जिसे पकड़ कर तुम बच सकते थे पर तुम्हारा विश्वास अंधविश्वास में बदल चुका था जिसके कारण तुमने अपने को बचाने का कोई प्रयास नही किया।

इस तरह की बात कई बार हमारे साथ भी होती है कि हम अपनी परिस्थितियों को स्वयं सुधारने के स्थान पर दूसरे से उम्मीद करते है। किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर भरोसा करना बुरी बात नहीं है लेकिन भरोसे के चलते सबकुछ ठीक अपनेआप ठीक हो जाएगा यह सोचना ठीक नहीं है। सबकुछ ठीक करने के लिए खुद भी बहुत कुछ करना चाहिए। भगवान पर विश्वास करना अच्छी बात है पर उसे अंधविश्वास में नही बदलना चाहिए। भगवान किसी को माध्यम बनाते हैं आपका काम करने के लिए ।

भगवान खुद नीचे उतर कर नहीं आते किसी काम को करने के लिए। भगवान के भरोसे काम छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि ज्यादा लगन और मेहनत से काम करना चाहिए। इस विश्वास के साथ की भगवान की सहायता मिलेगी और सब ठीक होगा। इस विश्वास की सकारात्मकता ही काम को पूरा करने में मदद करेगी।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Saturday, October 19, 2019

कड़ी मेहनत का मूल्य

कड़ी मेहनत का मूल्य।

जिस काम को करने से कुछ अच्छा मिलता है उन्हें करते रहना चाहिए।

एक व्यक्ति (नन्दन) को बगीचे में माली का काम मिला। मालिक ने उसे बता दिया था कि बगीचे में ज्यादा पेड़-पौधे नहीं है इसलिए वह बगीचे को बेचने की सोच रहा हैं।नन्दन मन लगाकर काम करने लगा। उसने पेडों के आसपास की जगह पर सफाई करके खूब सारे फूलों वाले पौधे लगा दिये। नन्दन बगीचे में ही रहकर पेड़ पौधों की देखभाल करने लगा। रात दिन की मेहनत से कुछ ही समय में बगीचे में चारो तरफ हरियाली दिखाई देने लगी। बाग के फूलों और फलों को बेचने से आमदनी होने लगी। मालिक भी नन्दन से बहुत खुश रहने लगा। एक रात नन्दन को एक पेड़ से आवाज आई कि वह नन्दन की मेहनत से प्रसन्न होकर जमीन के नीचे दबा हुआ धन नन्दन को देना चाहते हैं। यह बात सुनकर नन्दन की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने जमीन खोदकर धन से भरा मटका निकाल लिया। वह सोचने लगा कि अभी तो महीने की पगार से उसका खर्चा चल रहा है जब अपने घर जाएगा तब यह धन निकाल कर ले जाएगा। यह सोचकर उसने धन को बापस जमीन में दबा दिया। अब उसे लगने लगा कि वो जल्दी से छुट्टी लेकर अपने घर चला जाये। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। मालिक ने एक महीने बाद छुट्टी की मंजूरी दी। अब नन्दन ने बगीचे का ध्यान रखना बिलकुल बन्द कर दिया। वह सारे दिन रुपयों के बारे में सोचता रहता।

बिना पानी के कुछ ही दिनों में पौधे मुरझाने लगे। किंतु फिर भी नन्दन ने पेड़-पौधों का ध्यान नहीं रखा। जाने से पहले जब उसने गड्डा खोदकर देखा तो मटके में राख भरी हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया। तब पेड़ ने बताया कि वह धन नन्दन की मेहनत का फल था। नन्दन ने मेहनत करनी बन्द कर दी तो उसका फल भी नष्ट हो गया।

बगीचा नन्दन का नहीं था। वह केवल एक माली था तो वह रकम बगीचे के मालिक की थी। जिसमें से नन्दन को भी कुछ रकम मिल जाती। वह धन निकल कर कोई निवेश कर सकता था। धन खर्च कर सकता था, किंतु उसने लालच से काम लिया और जिस मेहनत, ईमानदारी के कारण धन मिला था। उसी मेहनत और ईमानदारी का साथ छोड़ दिया। वह पहले की तरह ईमानदारी से और मेहनत से काम करते हुए सारी रकम भी रख सकता था। उसने सारी धन सम्पति का लालच करते हुए आलस को भी अपना लिया।जिसकी वजह से उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया।

 जीवन में आगे बढ़ने के लिए, मेहनत सबसे पहले जरूरी होती है। फिर उस मेहनत को बनाये रखना भी जरूरी होता है। जब तक मेहनत करते रहोगे, तब तक सफलता की सीढ़ियाँ भी चढ़ते रहोगें और इन्ही ऊंचाईयों पर आपके लिए भी धन से भरे घड़े, मटके और संदूक इंतजार कर रहे होंगे।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।