Wednesday, January 1, 2020

बच्चों की परवरिश

बच्चों की परवरिश

बच्चों को बचपन मे ही इस तरह के परिवेश में पालना चाहिए कि बड़े होकर एक स्वस्थ, समझदार व्यक्तित्व सामने आए। बचपन में जो भी होता है उसी का प्रभाव बच्चे के आने वाले समय के व्यक्तित्व में झलकता है।

गोल-मटोल और स्वस्थ निकुंज सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ता था। एक दिन उसकी माँ किसी काम से उसकी कक्षा में चली गई, तो देखा लड़कियाँ अलग कतार में बैठी हैं और लड़कों को अलग बैंच पर बैठाया हुआ है। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कक्षा अध्यापिका से कहा कि "जब यह सहशिक्षा विद्यालय है, तो लड़कों और लड़कियों को अलग अलग पंक्तियों में क्यों बैठाया गया है"। अध्यापिका ने झेंपते हुए कहा कि "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे कहॉ और कैसे बैठे हैं"। माँ ने कहा "इस तरह तो, बच्चे बचपन से ही लड़कियों को अपने से अलग समझने लगेँगे"। टीचर बोली "ये तो अच्छी बात है। बच्चे लड़कियों का ख़ास सम्मान करेंगे"। तब माँ ने कहा कि "यह बचपन है। इसमें लड़के और लड़की का भेद बच्चों के मस्तिष्क में बिलकुल भी नहीं आना चाहिए। सह शिक्षा का अर्थ है, एकसाथ बैठ कर पढ़ाई करना"। अब कुछ दिन बाद उन्ही अध्यापिका जी ने माँ को स्कूल में बुलवाया ओर बताया कि, निकुंज ने अपने साथ बैठने वाली लड़की को धक्का मारा है। कक्षा में माँ ने देखा कि निकुंज के साथ बैठी बच्ची निकुंज से भी ज्यादा गोल मटोल है। बच्चों ने बताया कि बैंच पर जगह कम होने की वजह लड़की ने निकुंज को धक्का दे दिया जिससे वह नीचे गिर गया, जिसके कारण सब बच्चें हँसने लगे। निकुंज कपड़े झाड़कर दुबारा बैठने लगा पर तब तक बच्ची आराम से बैठ गई, तो बैंच पर जगह और कम हो गईं। जब वह बैठने लगा तो बच्ची ने दुबारा तेज की धक्का दे दिया। निकुंज की कोहनी साथ के बैंच से टकरा कर खुरच गई। उसने गुस्से में लड़की के बाल खींच दिए। टीचर ने पूरी गलती निकुंज की ही थेरायी। माँ ने सारी बात सुनी और हँसते हुए कहा कि "किसी बच्चे की गलती नहीं है क्योंकि, कक्षा में दो मोटे बच्चों को एक साथ, एक बैंच पर बैठाने की बजाए, एक पतले बच्चें के साथ एक मोटे बच्चे को बैठा दिया जाता, तो यह लड़ाई होती ही नहीं"।

बच्चे छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगते हैं। तब उन्हें सिखाये कि, झगड़ो का शांति से सामना करें। उस समय अगर कोई एक बच्चा उठ कर अध्यापिका को बैंच पर बची हुई जगह दिखा कर कहता कि इतनी कम जगह पर बैठ नहीं सकते तो लड़ाई नहीं होती। बचपन में ही लड़ाई को एक समस्या मान कर उसका समाधन निकलने की आदत बनाये। बच्चे हो या बड़े हो गुस्सा हमेशा नुकसान ही पहुँचाता है। सम्मान सबका करना चाहिए क्योंकि जो देंगे वही कुछ समय बाद पलट कर वापस आता है। लड़ाई का जवाब उसी तरह से देंगे, तो बात बढ़ जाती है। लेकिन खराब भाषा भाषा बोलने का उत्तर सहजता और शांति से देने से गुस्सा करने वाले का क्रोध शान्त हो सकता है, और स्वयं भी उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव से भी बचे रहेंगे। जब कोई अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो शांत रहना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है परन्तु नामुमकिन नहीं है। थोड़े अभ्यास से इन स्थितियों में चुप रहना, सही तरीके से सोचकर सटीक जवाब देना आने लगेगा।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

0 comments:

Post a Comment